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वाजे॑षु सास॒हिर्भ॑व॒ त्वामी॑महे शतक्रतो। इन्द्र॑ वृ॒त्राय॒ हन्त॑वे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vājeṣu sāsahir bhava tvām īmahe śatakrato | indra vṛtrāya hantave ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वाजे॑षु। स॒स॒हिः। भ॒व॒। त्वाम्। ई॒म॒हे॒। श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो। इन्द्र॑। वृ॒त्राय॑। हन्त॑वे॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:37» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:22» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शतक्रतो) अति सूक्ष्म बुद्धियुक्त (इन्द्र) दुष्ट पुरुषों के दल के नाश करनेवाले ! हम लोग जिन (त्वाम्) आपको (वृत्राय) मेघ के सदृश शत्रु के (हन्तवे) नाश करने को (ईमहे) युद्ध के उपकारक वस्तुओं के साथ याचना करते हैं वह आप (वाजेषु) जिनमें बहुत अन्न और विज्ञान आदि सामग्री अपेक्षित हैं ऐसे संग्रामों में (सासहिः) अत्यन्त सहनेवाले (भव) हूजिये ॥६॥
भावार्थभाषाः - जिस कर्म में जिसका स्थापन सभा करै, वह पुरुष उस अधिकार की यथायोग्य उन्नति करै और जिस अधिकार में जिसका नियोग होवै, वहाँ जो आज्ञा उसका वह कदाचित् उल्लङ्घन न करै ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे शतक्रतो इन्द्र ! वयं यं त्वा वृत्राय हन्तव ईमहे स त्वं वाजेषु सासहिर्भव ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वाजेषु) बह्वन्नविज्ञानादिसामग्र्यपेक्षेषु सङ्ग्रामेषु (सासहिः) भृशं सोढा (भव) (त्वाम्) (ईमहे) युद्धोपकरणैर्याचामहे (शतक्रतो) अमितप्रज्ञ (इन्द्र) दुष्टदलविदारक (वृत्राय) मेघमिव शत्रुम् (हन्तवे) हन्तुम् ॥६॥
भावार्थभाषाः - यस्मिन् कर्मणि यस्य स्थापनं सभा कुर्यात्स तमधिकारं यथावदुन्नयेत् यस्याऽधिकारे यस्य नियोजनं स्यात्तदाज्ञां स कदाचिन्नोल्लङ्घयेत् ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या कामात ज्याची नेमणूक सभा करते त्या पुरुषाने त्या अधिकाराचा यथायोग्य वापर करावा. ज्या अधिकाऱ्याची ज्या पदावर नेमणूक होते त्याने राजाच्या आज्ञेचे उल्लंघन करू नये. ॥ ६ ॥